औरत, आदमी और छत , भाग 36
,भाग 36
कुछ लेना है क्या पापा?
बस यूंही चलते हैं कुछ ले भी आयेंगे। नानी से पूछ ले रसोई का कुछ मंगवाना है तो?
नानी पापा के साथ बाज़ार जा रही हूँ कुछ रसोई का लाना है क्या?
ऐसा तो कुछ नहीं लाना बेटा।।
चल डिंकी वहीं देख लेंगे।
जारही हूँ नानी।
ठीक है बेटा।
काफी सालों बाद वीरेंद्र बेटी के साथ बाज़ार आया था,उसे अच्छा लग रहा था,पता नहीं इतना अरसा वहीं व्यस्त रहा या फिर बच्चों ने ही इसरार नहीं किया। डुग्गू ने तो उसे कभी कुछ कहा ही नहीं, शायद बोला भी आज हो वो भी अपनी माँ के लिए। डुग्गु ने तो कभी पैसे या कोई चीज माँगी ही नहीं उससे।पर डिंकी तो बचपनमें उसके साथ जाने की जिद्द भी करती थी, चीज भी मंगवाती थी। पैसे भी लेती थी। शादी के बाद मिन्नी ने रीति को तो जैसे उससे बिल्कुल अलग ही कर दिया था। वो कभी मिलती भी तो बहुत औपचारिक तरीके से।
खुद मिन्नी ने.उसे कभी कहा ही नहीं कि ये चाहिए या यहाँ चले, या वहाँ चले।
क्या लेना हैं डिंकी ले लो?
बाज़ार आप आये हैं पापा, आपने कुछ लेना हो तो ले लें।नहीं तो चलते हैं।
शायद डिंकी भी उस की तरहं विचारों में खोई थी और क्षुब्ध हो ग ई थी। वीरेंद्र उसके हाव भाव से ही समझ गया था।
उसने एक मिष्ठान्न भंडार से गाजरपाक पैक करवाया था।अपने लिए सिगरेट ली थी।
गाड़ी चल रही थी एक गहरी खामोशी व्यापत थी माहौल में
क्या हुआ डिंकी?
कुछ नहीं पापा। बस अपनी मंमी को मिस कर रही थी, जब उस दिन वो यहाँ आई तो कैसी डरी हुई कैसी बदहवास सी थी।।
वो मेरी ही गलती का नतीजा था बेटा, पता नहीं मुझे क्या हो जाता है, हर चीज का गुस्सा मिन्नी पर उतार देता हूँ, वो कुछ बोलती नहीं तो ,उफ्फ़, पता नहीं किस मानसिक स्थिति में होगी, वो। मेरी जो इस वक्त मानसिक स्थिति है वो शायद तुम लोग नहीं समझ पाओगे। पता नहीं इस रात की सुबह कब होगी।
रिलेक्स पापा, इंसान अपनी गलती स्वीकार कर उसे खत्म कर दे ये भी बहुत बड़ी बात होती है। मंमी कल आ ही रही हैं।सबसे बड़ी बात ये है कि वो अब बिल्कुल सामान्य है।
वक्त कभी रूका है चाहे खुशी का हो गम का हो, विरह का हो या मिलन का। वो रात भी बीत ग ई थी। सुबह बच्चों की वही दिनचर्या । डुग्गू प्रेक्टिस पर चला गया था। डिंकी पढ़ रही थी।वीरेंद्र सुबह. सुबह उठकर कहीं चला गया था।बिना बताये। आन्टी ने देखा तो कमरे में कोई नहीं था।।डिकीं कालेज के लिए तैयारी हो रही थी तो वीरेंद्र आया था।
चाय पियोगे पापा?
नहीं मैने बाहर पी ली थी। कालेज जा रही हो?
जी।
चल मैं छोड़ देता हूँ।
पापा मैं तो रोज ही पैदल जाती हूँ।
मैं यहाँ क्या करूँगा। तेरी माँ तो शाम तक आयेगी।
डिंकी को छोड़ कर वीरेंद्र कुछ देर सड़कों पर भटकता रहता है। वापिस घर आ जाता है। डुग्गु कुछ लिखने का काम कर रहग था। वीरेंद्र के पूछने पर बताता है कि सर ने सारे नोटस दे दिए हैं, वहाँ तैयारी कर लूंगा। समय मिलते ही।
रीति से फोन करके पूछले ,कब तक आ जायेंगे वो ।
पापा अभी बात हुई थी ,दीदी की दोस्त के पापा भी दिल्ली आ रहे हैं, दीदी और मंमी उन्हीं के साथ गाड़ी में ही आ रही हैं।
हम्म, वीरेंद्र को शायद ये बात पंसद नहीं आई थी।
वो गाड़ी लेकर फिर बाहर निकल गया था। छह बजे घर पहुंचा तो घर में चहल पहल थी।उसको देखकर सब चुप से हो ग ए थे जैसे।।
मिन्नी उठ कर दूसरे कमरे में चली ग ई थी। रीति ने चाय के लिए पूछा था।
नहीं बेटा पीकर आया हूँ।
वो उसी कमरे की तरफ मुड़ गया था जहाँ मिन्नी ग ई थी। दरवाजा ऊढ़का हुइ छोड़ दिया था उसने।
मिन्नी खिड़की के पास ही बैठी थी।
माफ नहीं करेगी?
कितनी बार करू?
बस आखिरी बार कर दो डियर।
बस रहने दें आप,और फिर मुझ से क्यों माफी माँगते ह़ै आप, इंसान को वही करना चाहिए जो उसे अच्छा लगे।रही बात मेरी तो मैं अलग रह लूंगी आपसे। तलाक लेना चाह़े तो तलाक दे देती हूँ। मैं खुद भी इस तरहं की ज़िंदगी से तंग आ चुकी हूँ।और मैं अब बचा जीवन बड़े सकून से गुजारना चाहती हूँ।
बच्चे अपना मंकाम बना रहे हैं। रिटायरमेंट तक स्कूल में रह लूंगी बाद की बाद में देखूंगी। किसी भी बच्चे के साथ गुजर जायेगी।
मैं कहाँ रहूँगा, और मेरी बाद की किस के साथ गुजरेगी?
घर है न आपके पास यहाँ भी गाँव में भी, जमीन जायदाद है,कोई ये कहने वाला नहीं की चल यहाँ से।
,जमीन जायदाद से ज़िंदगी कट जाती है क्या?
एक हद तक तो जरूरत पड़ती है जनाब।
मतलब तुमनें माफ नहीं करना?
देखिए वीरेंद्र,
ये वीरेन से वीरेन्द्र और सरपंच साहब ये क्या बकवास है मिन्नी?
मर्द शायद कभी प्यार नहीं करता और इश्क तो शायद कभी भी नहीं, कुछ मानसिक और कुछ शारिरिक जरूरतें उसे एक औरत के करीब ले आती हैं ,जो कि स्वाभाविक ह़ै,किन्तु उन जरूरतों के बाद अगर वो औरत को थोड़ी इज़्ज़त ही बख्श दें तो दोनों का जीवन आराम से कट सकता है।किन्तु हमारे केस में तो ऐसा हो रहा है कि जैसे मैं आपको सड़क पर पड़ी कोई लावारिस चीज मिल ग ई जब जी चाहा प्रयोग किया जब चाहा ठोकर मार दी।पर सहने की भी एक सीमा होती है जनाब,मैं आपसे बहुत प्यार और बहुत इज़्ज़त करती थी आपकी, क्योंकि प्यार शब्द की अनुभूति आपसे मिलने के बाद ही हुई थी।शादी के बाद इतने साल आपका ऐसा व्यवहार सिर्फ उसी प्यार के कारण भुगता मैंने,पर अब मैं माफी चाहती हूँ।
तुमनें कहा तुम प्यार करती थी, थी, क्या अब नहीं करती हो?
म़ै सिर्फ तुम्हारा हूँ मिन्नी विशवास कर डियर।
ये बात आप हर दूसरी औरत को जिसके साथ रात गुजारते हो कहते होंगे। चाहे वो वक्ती बात ही हो।फिर वो बात सिर्फ मेरे लिए कैसे र ह ग ई। खैर छोड़े अब जब उम्र ही बीतने के मकाम पर है तो, आप किसी के भी रहें ,ये तो शायद एक उम्र की ही बातें होती होंगी।
मिन्नी प्लीज़ यार ये आखिरी गलती है न कभी तुझ पर हाथ ऊठाऊंगा,और न ही किसी से कोई वास्ता रखूंगा।
ये डायलॉग पूराने हो गए सरपंच साहब। छोडि़ए इन्हें।
गर तूने अलग होने का फैंसला लिया तो मैं खुद को गोली मार लूंगा ,वो पिस्टल निकालता है।
रूआसी हो चुकी मिन्नी की रूलाई ही फूट पड़ती है।
जो मेरे मरने के कहने से ही ये हालत है तेरी तो मेरे मरने के बाद क्या होगी, मैं बखूबी जानता हूँ। जिद्द छोड़ दे तेरी कसम खाता हूँ, आज के बाद तेरा वीरेन बदल गया।
तभी डिंकी दो कपों में चाय और एक प्लेट में गाजरपाक लेकर आई थी।
मंमा चाय पी लो।
गाजरपाक भी गर्म है, खा लो आप दोनों। डिंकी बाहर चली गई थी।
मिन्नी तेरे लिए गाजरपाक लाया हूँ एक चम्मच खा ले मेरे हाथ से।
ज़हर ही ले आते पूरा का पूरा खा जाती।
बस कर दे मिन्नी ज्यादा गुस्सा करेगी फिर तबियत खराब हो जायेगी, और फिर तेरी ये औलादें ह़ै न खासतौर पर तेरा वो बिल्कुल चुप रहने वाला डुग्गु उसके तेवर नहीं देखे जायेंगे मुझसे। इतना गुस्सा है उसमें पहली बार देखा है।
ले चाय पी ले ठंडी चाय से फिर चिढ़ जायेगी तूं।
मिन्नी चुपचाप चाय उठा कर पीने लगती है।
ले ले एक चम्मच ये भी ।
नहीं खाना मुझे।
मैं लाया हूँ इसलिए।
मुझे पंसद नहीं।
तुम्हें तो पंसद ही यही था।
मैंने अपनी पंसद को खत्म कर दिया है।
मिन्नी,
अच्छा चल कहीं बाहर घूम आते हैं , यहाँ बच्चे सोच रहे होंगे कि मंमी पापा की लड़ाई ही खत्म नहीं हो रही।
आप जायें जहाँ जाना है, मैं यहीं ठीक हूँ।
तभी वीरेंद्र का मोबाइल बजता है,
आ ग ई क्या मिन्नी, वीरू?
हाँ
मेरी बात करा तो ।
फोन बढ़ा देता है, माँ है।
नमस्ते माँ।
वीरू से नाराज़ थी मिन्नी पर इ स बार माँ से भी नाराज़ हो गई।
नहीं माँ, मेरी वजह़ से सब को परेशानी होती थी तो मैंने ये सोचा कि क्यों न मैं ही चली जाऊँ। यहाँ ठीक हूँ मैं अपने बच्चों के पास हूँ।
मतलब माँ से भी नाराज़गी है,मैंने तो कभी तेरे को बहू माना ही नहीं मिन्नी, तेरी दी इज़्ज़त और प्यार के कारण मैं तो गाँव का इतना बड़ा घर और परिवार छोड़ के आ गई थी। और अब तूं मुझे छोड़ कर उधर चली ग ई। गर माँ मानती है तो मुझे भी ले जा अपने साथ। माँ की आवाज़ रूआसी हो ग ई थी।
पर माँ मेरा तो खुद का कोई ठिकाना नहीं है।
बकवास बंद कर, वीरेंद्र ने फोन छीन लिया था हाथ से।
माँ सुबह आ जायेंगे ,चिंता न कर। इसका तो दिमाग खराब है।
दिमाग इसका नहीं तेरा खराब है वीरू तूने हीरे की कद्र नहीं की।
अब तू भी मुझे सुनायेगी माँ मैं पहले ही इतना परेशान हूँ, अब दोनों सास बहू मिल कर सुना रही हो।
फोन दे मिन्नी को,कमला बात करेगी।
दीदी आजाओ अब मैं बहुत परेशान हूँ आपके बिना, आप नहीं है तो कोई खाना भी नहीं खाता, साहब सारा दिन पीते रहते थे। अम्मा की तबियत भी ठीक नहीं, रातको नींद ही नहीं आती इनको।
माँ को समय पर दवाई दे कमला।
आप आ जाओ दीदी अब।
माँ से बात कराओ कमला।
माँ गर नींद नहीं आ रही तो उस सफेद डिब्बे में से गोली के पते सेएक गोली ले लें प्लीज़।
मेरी दवाई तो तूं ही है मिन्नी, घर आजा बेटी।
ठीक है माँ देखती हूँ।
कुछ नहीं देखना बेटी अपने घर आजा। तेरा घर तेरा इंतज़ार कर रहा है।
जी माँ।
वीरेंद्र ने एकाएक उठ कर मिन्नी को अपनी बाहों में समेट लिया था। मैंने घर में आने का रहने का हुनर तुझ से सीखा है,प्लीज़ मुझे मेरे घर से दूर मत कर। उसकी आँखों में उमड़ी नमी को वीरेंद्र ने अपने अन्तर में समेट लिया था।
दरवाजे पर बिना दस्तक की दस्तक से आहट हुई थी। वीरेंद्र मिन्नी से अलग हो गया था।
मंमा खाना लगा दें नानी पूछ रही है?
तुम लोग खा लो बेटा पहले, मैं बनाऊं क्या?
ओ मेरी सुपरवुमैन माँ कुछ दिन आराम कर लो, फिर आप ने ही बनाना है।
पापा लगा दें आप दोनों के लिए खाना?
लगा दो बेटा।
पहले पापा को डाल दो, मैं बाद में खा लूंगी।
डिंकी बाहर चली ग ई थी।
मेरे साथ खाने में क्या समस्या है?
रोज़ तो जैसे हम साथ ही खाते थे न, जो आज नहीं खा रहे तो बुरा लग रहा है।
तभी डिंकी खाना ले आई थी दोनों के लिए ।
गरमा गरम खाना पचास रूपये प्लेट ,गरमा गरम।
वीरेंद्र हँसने लगा था। रख दें साहब, खाकर पैसे दे देंगे।।
ठीक है सर लीजिए गरमा गरम खाना।
कुछ चाहिए तो आवाज़ दे दीजिएगा मंमा।
वीरेंद्र खाने के बाद नीचे घूमने चला गया था,उसने मिन्नी को बोला था,पर वो बोली, बच्चों के साथ बैठूंगी।
रीति और डिकीं ने रसोई समेट ली थी। डुग्गु भी आ चुका था।
कृष्णा आन्टी और मिन्नी आपस में बाते कर रहे थे।
तभी किसी से गुस्से में जोर जोर से फोन करता हुआ वीरेंद्र उपर आ गया था।
आप ने कम से कम मुझसे पूछा तो होता।
क्या हुआ पापा?
दादी है तेरी, कहती है कि रूपा दीदी से बात हुई तो मैंने कह दिया कि हम लोग बच्चों के पास आये हुए हैं,बस दीदी ने कह दिया कि वो कल बेटी को लेकर शापिंग के लिए दिल्ली आ रही हैं जो समान हमने दिलवाना है। वो हम उन्हें यहीं से दिलवा दे।
फिर आप गुस्सा क्यों कर रहें हैं ये तो ठीक बात है?
वो शापिंग के लिए तेरी माँ को भी साथ लेना चाहती है,और इस की तबियत भी उतनी ठीक नहीं है।
मंमी अब बहुत बेहतर ह़ै अंकल, फिर आप भी तो साथ होंगे।
दवा हम दे ही रहे हैं। हाँ बस दवा की मात्रा तय करवानी होगी मेडिकल जाकर।
वो तो मैं घर पहुंचते ही ले जाऊँगा डाक्टर के पास।
मंमी है कहाँ तुम्हारी?
नानी के साथ छत पर टहल रही है।
बच्चे अपनी अपनी पढ़ने और सोने की सीट जमा रहे थे।
मंमी आप और अंकल उस कमरे में सो जायें क्योंकि हम तो देर तक पढ़ते है और सुबह जल्दी उठते है, दवा के कारण आपकी नींद डिस्टर्ब होगी।
अरे नहीं बेटा ठीक हूँ मैं अब बिलकुल ।
वो ही तो मैं कह रही हूँ डियर मंमा कि आप इस ठीक को बरकरार रखें और आराम करें।
मंमी वो रूपा बुआ अपनी बेटी को लेकर शापिंग करने आ रही हें कल, दादी ने उन्हें बताया कि आप और पापा यहाँ आये हुए हैं।
तेरे पास फोन आया था क्या बुआ का?
नहीं पापा के पास फोन आया था दादी का, तो पापा थोड़ा गुस्से म़े बोल रहे थे इसलिए मैंने पूछ लिया था।
गुस्से में क्यों?
वो कह रहे थे कि आपकी तबियत ठीक नहीं तो आप केसे चल पायेंगी, जबकि बुआ कह रही हैं कि मिन्नी के साथ ही शापिंग करनी है।
पता नहीं क्यों पर मिन्नी खामोश ही रही।
मिन्नी तुम आराम कर लो सुबह बाज़ार जाना है तो आराम की भी जरूरत है।
तभी डुग्गुआया था, माँ की गोदी में सिर रख लिया था उसने,
मंमा आय एम आलवेज विद यू।
आई नो बेटा।मिन्नी ने उसके सिर पर हाथ फेरा था।
ओय मंमा के लाडले वो नोटस पूरे ले लिए न तूने जो साथ ले जाने हैं।
दीदी प्लीज़ सारे रख लिए हैं, आपको तो सारा दिन पढ़ाई और कैरियर के अलावा कुछ सूझता है क्या?
कल को शादी होगी तो उसे भी कह देना कि ये करो वो पढ़ो ताकि प्रमोशन जल्दी मिले।
राईट डूग्गु इतने दिनों में तूने आज पहली बार समझदारी वाली बात की है, डिंकी ने उसे शाबासी दी थी।
रूक जाओ तुम दोनों, मैं बताती हूँ तुम्हें।रीति उनके पीछे दोड़ी थी।
कृष्णा आन्टी बहुत ही स्नेह से मुस्करा रही थी।
डिंकी तो शुरु से ही शैतान हैं आन्टी डुग्गु और रीति शरीफ बच्चे हैं।
अरे अरे मंमा बात आपके शरीफ बच्चों ने ही शुरू की थी, मैंने नहीं, समझी आप।
ये तीनों एक बार तो शरारत जरूर ही करते हैं, बहुत अच्छा लगता है मुझे इन बच्चों के बीच बच्चा बनना।
तभी उस कमरे से लगातार छीकने की आवाज़े आई थी, मिन्नी बिना कुछ बोले रसोई में चली गई थी। वहाँ रखी अदरक और कालीमिर्च से काड़ा बना कर डिकीं को दिया था , जाओ पापा को दे दो।
पापा मंमा ने ये दिया है पी लीजिए।
क्या है?
जोआप पीना नहीं चाहें गे, पर पीना पड़ेगा।
वो काढ़ा, वीरेंद्र ने बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा था।और गिलास पकड़ लिया था।
साढे नों बज ग ए थे, डूग्गु सो गया था, रीति और डिकीं पढ़ने बैठ ग ए थे। आन्टी भी ऊंघ रही थी। यहाँ सोने की व्यवस्था भी नहीं थी।मिन्नी गुड नाइट बोल कर दूसरे कमरे में चली गई थी।वीरेंद्र शायद सो ही गया था, मिन्नी भी चुपचाप लेट गई थी। उसे भी नींद आने लगी थी।
तभी वीरेंद्र ने करवट बदलते हुए कहा था, जब बात ही नहीं करनी तो मेरी फिकर भी क्यों करती हो, अच्छा है पीछा छूटेगा तुम्हारा।
आप चाहते क्या हैं?
यू नो बेटर देन मी।
मुझे नींद आ रही है, सुबह उठना भी है। बच्चे जल्दी उठ जाते हैं।
वीरेंद्र ने उसको अपने आगोश में समेट लिया था।मुझे भी तो सोना है मैडम और सुबह उठना है अपनी बीवी के हाथ की चाय के साथ।
मैं तुम्हारे बिना ज़िंदगी की कल्पना भी नहीं कर सकता।
ये बात शायद हर मर्द हर उस औरत को कहता होगा जिसके साथ वो उन हसीन लम्हों को जीता होगा।
मैंने ये लम्हें तेरे साथ पहली बार नहीं जियें हैं, समझी हर बात को फिलासफी मे खत्म कर बात का मतलब बिगाड़ देती है।
सो जा अब वरना फिर झगड़ा करेगी, बहुत प्यारा मूड है अच्छी नींद आयेगी क ई दिनों बाद।
मिन्नी ने करवट बदल ली थी।
नाराज़ हो ग ई हो क्या मेरी बात से?
मिन्नी को थोड़ा हेरानी हुई थी कि उन लम्हों को जीने के बाद भी वीरेन को उसकी नाराज़गी की फिक्र थी।
मुझे भी नींद आ रही है।
फिर करवट क्यों बदली है?आज तो पी भी नहीं रखी वो जिसकी स्मेल से तुम्हारा दम घुटता है।
सो जायें अब ज्यादा केयरिंग होने की जरूरत नहीं, मिन्नी की आँखों म़े हल्की सी मुस्कान थी।
बस इसी की कमी थी,अब सो जाऊँगा, तेरी ये उदास आँखें ही बर्दाश्त नहीं होती मुझसे।
मिन्नी सोचते सोचते सो ग ई थी, कितनी जल्दी भूल जाता है न मर्द, अपने किस्सों को और तुरंत सामान्य जीवन भी चाहता है।
सुबह मिन्नी को उठते उठते साढे छह बज ग ए थे। वीरेंद्र अभी सोया ही था। मिन्नी नीचे पार्क में घूमने चली गई थी।बच्चे पढ़ रहे थे। सात बजे मिन्नी ऊपर आई ,उसने बच्चों से पूछा था चाय के लिए डिंकी ने मना कर दिया था। रीति को आधा कप चाय देकर वो कमरे में चाय ले ग ई थी।
पानी पीकर वीरेंद्र ने चाय का घूट भरा और बोला रूपा दीदी की बेटी की शादी की शापिंग तो करवाओगी ही अपने और बच्चों की भी कर लो शापिंग, सारे ही सात दिन रह ग ए हैं शादी के। और यार आज बाजा़र भी जाना है और मेरे कपड़े भी गंदे हो चुके हैं।
मैंने धो दिए थे, धोबी को दे आई हूँ नीचे,अभी दे जायेगा।
तुम्हें सबका कितना ख्याल रहता है मिन्नी?
वो उठ कर जा रही थी कि वीरेंद्र बोला, बैठ जा न यार।
बच्चों को भी कालेज जाना है, तैयार होना है।
रोज तो जैसे तुम ही तैयार करती हो उन्हें, छोटे छोटे जो हैं।
डिंकी ओ डिंकी
जी पापा
इधर आ।
रीति और डुग्गु को भी बोल दे, तुम लोग भी चलो, शादी के लिए अपने कपड़े वगैरह भी ले लेना।
पर पापा मेरी तो क्लास है आज कोचिंग वाली, दीदी बारह बजे फ्री हो जाती है। डुग्गु और दीदी जा सकते है। वैसे पापा हमनें तो आज तक कभी कपड़े खरीदे ही नहीं मंमा ही खरीदती हैं सबके।
रीति और डुग्गु इधर आओ।
जी अंकल ,
तुम लोग भी शापिंग के लिए चलो।
अंकल हम लोग के लिए तो हमेशां मंमी ही लेती है।
अरे तो साथ तो चलो ,देखोगे तभी तो सीखोगे।
डुग्गु तूं बहन को ले आइयो, फोन कर लेना मैं लोकेशन भेज दूंगा।
जी पापा।
मंमी मैं सैटर जा रही हूँ, आप लोग नाश्ता वगैरह करके जाना। फिर मार्केट में ही मिलते हैं।
ठीक है बेटा।
आन्टी आप भी चले न शादी में।
नहीं वीरेंद्र जी मैं तब तक स्कूल में रह लूंगी, बहुत दिन हो ग ए हैं।जब तक बच्चे शादी निपटायेगे मैं हास्टल में ही रहूँगी।
आप घर भी रह सकती हैं आन्टी कमला और माँ तो घर पर ही है।
रूपा दीदी का फोन आ गया था। वीरेंद्र मिन्नी को लेकर मार्केट पहुँच गया था। पहले भानजी के लिए लहंगा खरीदा गया जो मिन्नी की पंसद का था।मिन्नी की जेठानी और जेठ भी अलग गाड़ी से साथ आये हुए थे।उनकी बेटी भी साथ में थी।
एक बड़ी सी दुकान पर ये लोग कुछ सूट पंसद कर रहे थे, तभी मिन्नी की नजर स बराबर की लाईन में ग्राहकों के साथ बैठे आदमी पर पड़ी, तो वोएकदम चौंक ग ई। वो लगातार उसे ही देख रहा था। उफ़्फ़ ये और यहाँ।
तभी रीति और डुग्गु भी आ ग ए थे।
रीति को देखकर मिन्नी भी परेशान हो ग ई थी।
कैसी है रीतिका,बहुत बहुत मुबारक हो ।
थैंक्स बुआ जी।
पाँचवां रैंक आया है लड़की का हरियाणा सिविलसर्विसेज में। रूपा ने अपने बड़े भाई को बताते हुए कहा था, उन्होंने उसके सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया था।
मंमी मैं बाहर खड़ा हूँ। आप लोग खरीदें. डुगू ने कहा था।
बाहर देख कोई नींबू पानी वाला हो तो मुझे बताना।
जी मंमी।
म़ै चलता हूँ वीरेंद्र ने कहा था।
आप बैठें डुग्गु है न मेरे साथ।
मंमा मैं भी आती हूँ।
उनके बाहर जाते ही वो आदमी भी बाहर आ गया था।
मृणाली ,ये रीतिका है न?
जी ये रीतिका ही है।
तभी वीरेंद्र बाहर आ गया था। तुम ठीक हो न मिन्नी?
उस आदमी को नजदीक खड़े देखकर वीरेंद्र ने सख्त लहज़े में कहा था,
क्या समस्या है भाई साहब?
तभी रीतिका ने बात को संभालते हुए कहा था, अंकल इन अंकल ने मेरी अख़बार में फोटो देखी थी तो ये पूछ रहे थे कि मैं वही रीतिका हूँ न।?
जी जी ये वही रीतिका, और हमारी रीति है।
मुबारक हो बेटी, खुश रहो।
तभी डूग्गु नींबू पा नी ले आया था, मिन्नी नींबू पानी पी रही तो वो आदमी अंदर चला गया था।
रीति अंदर चली ग ई थी, दुकान में डुग्गु भी उसके साथ था।
वीरेंद्र और मिन्नी बाहर खड़े थे, तभी वो आदमी दो तीध महिलाओं और बच्चों के साथ बाहर आ गया था। आगे चलते हुए भी उस की हसरत भरी निगाहें मिन्नी की तरफ थी।
सिगरेट पीते हुए वीरेंद्र की निगाहें उस आदमी पर पड़ी।
इस की समस्या क्या है?
क्या हुआ, मिन्नी जैसे घबरा ही ग ई थी।
वो मुड़ मुड़ कर तेरे को देख रहा है।
आप भी ना, चल़े़ अ़ंदर।
वो उसका हाथ थामें दुकान में चली गई थी।
क्रमशः
औरत आदमी और छत
लेखिका, ललिता विम्मी
भिवानी, हरियाणा